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टैक्स रिटर्न में झूठी जानकारी दी है तो बड़ी मुसीबत का सामना करना पड़ सकता हैं...

7 August 2018 | 12.45 PM

नई दिल्ली: आशीष कुमार को अपनी कानों पर यकीन नहीं हुआ, जब उनके दोस्त ने बताया कि उसने किस तरह से पिछले साल बड़ा रिफंड हासिल किया था। उन्होंने बताया, 'जिस टैक्स प्रफेशनल ने मेरे दोस्त को रिफंड दिलवाया था, उसने उसका 15% हिस्सा बतौर कमीशन लिया था।' इस साल कुमार ने भी उस शख्स को रिफंड की उम्मीद में अपना फॉर्म 16 भेजा। कुछ दिनों में उन्हें टैक्स डिपार्टमेंट से रिटर्न फाइल किए जाने की कन्फर्मेशन भी मिल गई। रिटर्न में कुमार की तरफ से 50,000 से अधिक रिफंड का दावा किया गया था।


दरअसल, टैक्स प्रफेशनल ने उनकी आमदनी में 1.65 लाख रुपये की कमी करके रिटर्न फाइल की थी, जिससे 50,000 से अधिक का रिफंड बना था। प्रफेशनल ने दावा किया था कि उन्होंने कुछ भत्तों और सेक्शन 10 के तहत आने वाले डिडक्शन रिटर्न में भरे हैं, जो उनके फॉर्म 16 में नहीं थे। वहीं, फॉर्म 16 के मुताबिक असेसमेंट इयर (आकलन वर्ष) 2017-18 में कुमार की आमदनी 14.85 लाख रुपये थी, जबकि टैक्स प्रफेशनल ने रिटर्न में आमदनी 13.2 लाख रुपये ही दिखाई थी।


कुमार 50,000 रुपये के रिफंड मिलने से काफी खुश थे। हालांकि, जब उन्होंने इस बारे में कुछ टैक्स एक्सपर्ट्स से बात की तो वह मायूस हो गए। दिल्ली के एक चार्टर्ड अकाउंटैंट ने बताया, 'इस साल के टैक्स फॉर्म में टैक्सपेयर को रिटर्न में अलग-अलग इग्जेम्पशंस का ब्रेकअप देना होगा।' कुमार के रिटर्न में गलत आंकड़े दिए गए हैं। इसलिए जब टैक्स डिपार्टमेंट उनके रिटर्न का असेसमेंट करेगा तो यह गलती पकड़ी जाएगी। कंप्यूटर ऐडेड स्क्रूटिनी सिस्टम (सीएएसएस) से यह अंडररिपोर्टिंग तुरंत पकड़ में आ जाएगी। चार्टर्ड अकाउंटेंट ने बताया, 'इसमें टैक्स प्रफेशनल का कुछ भी दांव पर नहीं लगा है। इसमें टैक्सपेयर को इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के नोटिस का जवाब देना होगा।'


कुमार की तरह हजारों टैक्सपेयर्स शायद गलत टैक्स रिटर्न फाइल कर चुके हैं। कई फर्जी टैक्स प्रफेशनल्स लोगों को रिफंड का झांसा देकर उनके गलत रिटर्न फाइल कर रहे हैं। वे रिफंड के लिए या तो टैक्स योग्य आमदनी को कम दिखाते हैं या गलत डिडक्शंस और इग्जेम्पशंस क्लेम करते हैं।


ऑनलाइन फाइलिंग के लिए दस्तावेज नहीं देने पड़ते


ऐसा करना आसान है क्योंकि डिडक्शंस या इग्जेम्पशंस के लिए टैक्स रिटर्न के वक्त दस्तावेज नहीं देने पड़ते। मुंबई के एक चार्टर्ड अकाउंटेंट ने बताया, 'कोई हाउस रेंट अलाउंस और मेडिकल इंश्योरेंस, होम लोन, एजुकेशन लो या डिसेबिलिटी के लिए डिडक्शन बिना किसी सबूत के क्लेम कर सकता है।' हालांकि, टैक्स एक्सपर्ट्स का कहना है कि चोरी पकड़े जाने पर फर्जी डिडक्शंस और इग्जेम्पशंस की भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। अशोक माहेश्वरी ऐंड असोसिएट्स के पार्टनर अमित माहेश्वरी ने बताया, 'अगर टैक्सपेयर ने जानबूझकर गलत डिडक्शन या इग्जेंप्शन क्लेम किया है और उसके पास उसके सबूत नहीं हैं तो इसे टैक्स की चोरी माना जाएगा। सेक्शन 270ए के मुताबिक ऐसे मामलों में टैक्स चोरी की रकम के 200% तक पेनल्टी लगाई जा सकती है।'


अपनी तरफ से टैक्स डिपार्टमेंट हर क्लेम की निगरानी कर रहा है। क्लियरटैक्सडॉटइन के फाउंडर और सीईओ अर्चित गुप्ता ने बताया, 'एलटीए और मेडिकल अलाउंस समेत सेक्शन 10 के तहत आने वाले ज्यादातर इग्जेम्पशंस का क्लेम एंप्लॉयर के पास खर्च का सबूत जमा कराने के बाद ही लिया जा सकता है।' आप खुद भत्तों का क्लेम नहीं कर सकते। चार्टर्ड अकाउंटेंट करण बत्रा का कहना है, 'आप तभी इग्जेम्पशन क्लेम कर सकते हैं, जब कंपनी ने आपको भत्ते का भुगतान किया हो और उसका जिक्र फॉर्म 16 में हो।' हालांकि, एचआरए जैसे कुछ क्लेम टैक्स फाइलिंग के वक्त ही किए जा सकते हैं।

बत्रा ने कहा, 'अगर एंप्लॉयी कंपनी की तय डेडलाइन तक प्रूफ नहीं जमा करा पाता तो वह आईटीआर में एचआरए इग्जेंप्शन क्लेम कर सकता है।' साल में 1 लाख रुपये से अधिक के एचआरए इग्जेंप्शन के क्लेम के लिए टैक्सपेयर को मकान मालिक का पैन जमा करना होगा। अगर टैक्सपेयर एचआरए पर भारी इग्जेंप्शन क्लेम करता है तो इनकम टैक्स डिपार्टमेंट यह भी देखेगा कि मकान मालिक ने किराए की रकम पर टैक्स चुकाया है या नहीं? जिस टैक्सपेयर को सैलरी के हिस्से के तौर पर एचआरए नहीं मिलता, वह सेक्शन 80GG के तहत रेंट पर इग्जेंप्शन क्लेम कर सकता है। हालांकि, इसके लिए कुछ शर्तें तय हैं और इसकी सीमा 5,000 रुपये प्रति माह है।


असेसमेंट भी काफी सख्त हो गया है। हाल तक इंडिविजुअल के फॉर्म 26AS का मिलान असेसमेंट के वक्त घोषित टैक्स से किया जाता था। टैक्स फाइलिंग पोर्टल Taxspanner.com के सह-संस्थापक और सीएफओ सुधीर कौशिक ने बताया, 'अब टैक्स डिपार्टमेंट फॉर्म 16 को भी चेक कर रहा है और उसका मिलान रिटर्न में दी गई इनकम से कर रहा है।'


झूठी डिडक्शन क्लेम करना


चैप्टर VI-A डिडक्शंस जाली क्लेम का एक बड़ा स्थान है। कुछ टैक्सपेयर्स 31 मार्च की समयसीमा तक अपनी टैक्स प्लानिंग जमा करने में सक्षम नहीं होते। अन्यों के पास टैक्स सेविंग इन्वेस्टमेंट के लिए रकम नहीं होती। लेकिन इसके बावजूद वे सेक्शन 80C के तहत पूरे 1.5 लाख रुपये और सेक्शन 80D के तहत मेडिकल इंश्योरेंस के लिए 25,000-55,000 रुपये का क्लेम कर सकते हैं। स्वयं के लिए गंभीर दिव्यांगता (सेक्शन 80U) या आश्रित के लिए (सेक्शन 80DD) के लिए 1.25 लाख रुपये तक की डिडक्शन महत्वपूर्ण हो सकती है।


टैक्स एक्सपर्ट्स का कहना है कि डिपार्टमेंट के लिए अब जाली क्लेम को पकड़ना आसान हो गया है। Taxfile.in के सीनियर टैक्सेशन अडवाइजर शुभम अग्रवाल ने बताया, 'अब प्रत्येक वित्तीय लेनदेन (फाइनैंशल ट्रांजैक्शन) में आधार नंबर होता है। इस वजह से टैक्स डिपार्टमेंट यह आसानी से पता लगा सकता है कि आपने वह मेडिकल इंश्योरेंस पॉलिसी वास्तव में खरीदी है या नहीं जिसके लिए आपने सेक्शन 80D के तहत डिडक्शन क्लेम की है।'


दान का फर्जीवाड़ा

टैक्स फ्रॉड का एक बड़ा एरिया सेक्शन 80G के तहत चैरिटीज को डोनेशन है। इसके तहत एक टैक्सपेयर सेक्शन 80G के तहत डिडक्शन के पात्र एक चैरिटेबल ऑर्गनाइजेशन को एक रकम दान करता है। यह रकम टैक्सपेयर को नकद में वापस कर दी जाती है। टैक्सपेयर को चुकाई गई रकम पर डिडक्शन क्लेम करने से फायदा मिलता है, जबकि चैरिटेबल ऑर्गनाइजेशन को अघोषित रकम को वैध रकम में बदलने से लाभ होता है। डिडक्शन आमतौर पर दानकी गई रकम की 50% होती है। उदाहरण के लिए, 30% के सबसे ऊंचे टैक्स ब्रैकेट में आनेवाला कोई व्यक्ति 1 लाख रुपये दान करता है तो वह 50,000 रुपये के लिए डिडक्शन क्लेम कर सकता है, इससे उसकी टैक्स देनदारी 15,450 रुपये कम हो जाएगी। यह एक ऐसा तरीका है जिसका इस्तेमाल हजारों टैक्सपेयर्स प्रत्येक वर्ष करते हैं। सरकार को इस तरह की मनी लॉन्ड्रिंग की तरकीबों पर लगाम लगाने की जरूरत है


प्रत्येक वर्ष रिटर्न का 3 से 5% स्क्रूटनी के लिए चुना जाता है। माहेश्वरी ने बताया कि टैक्स डिपार्टमेंट की डेटा ऐनालिटिक्स की क्षमता में लगातार सुधार हो रहा है और इस वजह से गड़बड़ी करने वालों के पकड़े जाने के अवसर भी बढ़ गए हैं।


अगर आपकी रिटर्न अस्वीकार होती है

आमतौर पर इनकम डीटेल्स में मिसमैच होने पर रिटर्न को अस्वीकार किया जाता है और असेसी को गलती सुधारने का मौका मिलता है, लेकिन जानबूझ कर गलत जानकारी देने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। अगर असेसिंग अधिकारी को इनकम के डीटेल्स में गड़बड़ी मिलती है तो वह जुर्माना लगा सकता है और टैक्सपेयर के खिलाफ मामला भी शुरू हो सकता है।


इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के लिए रिफंड के जाली क्लेम एक बड़ी समस्या बन गए हैं। इस वर्ष की शुरुआत में बेंगलुरु में एक टैक्स रिफंड से जुड़ा रैकेट पकड़ा गया था। एक टैक्स कंसल्टेंट ने टॉप कंपनियों के लगभग 1,000 एंप्लॉयीज के रिटर्न दाखिल किए थे और उनमें हाउस प्रॉपर्टी से लॉस के क्लेम बढ़ाकर दिखाए थे। टैक्स डिपार्टमेंट के सूत्रों ने बताया कि उन्होंने हाल ही में सैन्य कर्मियों के टैक्स रिटर्न से जुड़ा इसी तरह का एक घोटाला पकड़ा है।

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