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शेयर बाजार में निवेश की तय हो सकती है सीमा:

13 August 2018 | 2.34 PM

मुंबई: द सिक्योरिटीज ऐंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) शेयरों और इक्विटी डेरिवेटिव्स में निवेशकों के एक्सपोजर यानी निवेश करने की सीमा को उनकी नेटवर्थ से जोड़ सकता है। इस मामले से वाकिफ तीन लोगों ने यह जानकारी दी है। सेबी इसलिए यह कदम उठा रहा है ताकि लोग शेयरों में हद से अधिक निवेश न करें। शेयर को बॉन्ड के मुकाबले अधिक रिस्की माना जाता है।


मार्केट पार्सिटिपेंट्स के मुताबिक, सेबी ने इस प्रपोजल के बारे में स्टॉक ब्रोकर्स को जानकारी दी है। एक ब्रोकर ने कहा, 'रेगुलेटर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स और ब्रोकर्स से निवेशकों की एसेट्स को सर्टिफाई कराना चाहता है और उसे देखते हुए उनके इक्विटी एक्सपोजर की सीमा तय की जाएगी।' यह प्रस्ताव कुछ अमीर देशों के अक्रेडिटेड इन्वेस्टर के कॉन्सेप्ट की तरह है। अक्रेडिटेड इन्वेस्टर उसे माना जाता है जो आमदनी, नेटवर्थ, एसेट साइज, गवर्नेंस स्टेटस या प्रफेशनल एक्सपीरियंस की शर्तें पूरी करता है। अमेरिका में इस सिस्टम को उन निवेशकों को बचाने के लिए अपनाया है, जो अनरजिस्टर्ड कंपनियों में निवेश के आर्थिक खतरों को बर्दाश्त नहीं कर सकते।


अगर भारत में यह प्रस्ताव लागू होता है तो इसका बड़े पैमाने पर निवेशकों पर असर होगा। खासतौर पर इससे ऐग्रिकल्चर या बिजनस कम्यूनिटी के लोग प्रभावित हो सकते हैं, जो अपनी वास्तविक आमदनी की जानकारी नहीं देते। ब्रोकरों का कहना है कि इन लोगों की डिक्लेयर्ड नेटवर्थ या आमदनी उनकी वास्तविक नेटवर्थ से काफी कम हो सकती है। सेबी ने इसे लागू करने को लेकर मार्केट पार्टिसिपेंट्स के साथ बातचीत की है। पता चला है कि ब्रोकरों ने सेबी से हाई नेटवर्थ इन्वेस्टर (एचएनआई) को इस प्रस्ताव से अलग रखने की अपील की है। उन्होंने ब्रोकरों के क्लायंट की नेटवर्थ तय करने पर भी सवाल उठाए हैं। ब्रोकरों को डर है कि इस प्रस्ताव के लागू होने से उनके बिजनस में कमी आएगी। एक बड़ी ब्रोकरेज कंपनी के सीईओ ने कहा, 'कई छोटे निवेशक मार्जिन फंडिंग के जरिये शेयर बाजार में पैसा लगाते हैं। ऐसे लोग नेटवर्थ की शर्त पूरी नहीं कर पाएंगे। इसलिए उन्हें अपने सौदे काटने पड़ेंगे।'


मुंबई की एक ब्रोकरेज ने कहा कि निवेशकों को नेटवर्थ सर्टिफिकेट लेने के बाद उस हिसाब से अपने पोर्टफोलियो में बदलाव करना होगा। उन्होंने कहा कि इस प्रस्ताव के लागू होने पर डायरेक्ट इक्विटी से पैसा म्यूचुअल फंड में शिफ्ट हो सकता है। सेबी को ऐसे कई मामलों का पता चला है कि जिनमें खासतौर पर इक्विटी डेरिवेटिव्स में निवेशकों ने डिक्लेयर्ड इनकम से बड़ी पोजिशन ले रखी है। दरअसल, निफ्टी या स्टॉक फ्यूचर्स में वास्तविक वैल्यू से काफी कम पैसे देकर पोजिशन ली जा सकती है।

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